बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 शिक्षाशास्त्र - भारतीय शिक्षा प्रणाली का विकास एवं चुनौतियाँ बीए सेमेस्टर-2 शिक्षाशास्त्र - भारतीय शिक्षा प्रणाली का विकास एवं चुनौतियाँसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 शिक्षाशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
महत्वपूर्ण तथ्य
19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने अपने अधीनस्थ भारतीय क्षेत्र का सर्वेक्षण कराया।
1813 के बाद देशी पाठशालाओं का पतन होना शुरू हो गया था।
ईसाई मिशनरियों और कम्पनी द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों में शिक्षा तो निःशुल्क थी ही, साथ ही निर्धन बच्चों को पाठ्य-पुस्तकें आदि भी निःशुल्क दी जाती थी और अति निर्धन छात्रों को छात्रवृत्तियों भी दी जाती थी।
ईसाई मिशनरियों और कम्पनी द्वारा संचालित स्कूलों नवीन रोचक शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाता था और अंग्रेजी के साथ-साथ देशी स्थानीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षा की व्यवस्था थी।
मैकॉले ने स्पष्ट किया है कि धनराशि को व्यय करने के सम्बन्ध में कम्पनी पर किसी प्रकार का बन्धन नहीं है, वह इसे जिस मद पर जिस तरह व्यय करना चाहे कर सकती है।
मैकॉले ने स्पष्ट किया कि साहित्य शब्द से तात्पर्य केवल भारतीय साहित्य भाषा संस्कृत, अरबी आदि साहित्य के ही नहीं हैं, अपितु इसकी सीमा में पाश्चात्य साहित्य (अंग्रेजी साहित्य) भी आता है।
भारतीय विद्वानों की सीमा के सम्बन्ध में मैकॉले ने कहा कि इसमें केवल भारतीय भाषाओं (संस्कृत और अरबी) के विद्वान ही नहीं, अपितु अंग्रेजी साहित्य के विद्वान भी आते हैं लॉक के दर्शन और मिल्टन की कविताओं के जानकार भी आते हैं।
1813 के आज्ञा पत्र की तत्सम्बन्धी धारा 43 की व्याख्या करने के बाद लार्ड मैकॉले ने भारतीयों की शिक्षा के स्वरूप के सम्बन्ध में अपने सुझाव प्रस्तुत किए।
भारतीय साहित्य (संस्कृत और अरबी) के विषय में मैकॉले ने लिखा है कि भारतीय धर्म ग्रन्थ अन्धविश्वासों और मूर्खतापूर्ण तथ्यों से भरे हैं।
प्राच्यवादी भारतीय भाषाओं (संस्कृत और अरबी आदि) को शिक्षा का माध्यम बनाना चाहते थे और पाश्चात्यवादी अंग्रेजी को मैकॉले ने अपने विवरण पत्र में अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाने का सुझाव दिया।
कम्पनी के 1813 के आज्ञा पत्र में यूरोपीय ईसाई मिशनरियों को भारत आने की खुली छूट ली गई। परिणामतः भारत में बड़ी संख्या में ईसाई मिशनरियों का प्रवेश शुरू हुआ और उनके धर्म प्रचार और शिक्षा प्रसार के काम में तेजी आई।
कम्पनी के 1813 के आज्ञा पत्र के प्रकाशित होते ही भारत में वैस्टिस्ट मिशन सोसाइटी, लन्दन मिशनरी सोसाइटी, वैसलियन मिशन, चर्च मिशनरी सोसाइटी और स्कॉच मिशन सोसाइटी आदि से सम्बन्धित मिशनरियों ने प्रवेश किया और ईसाई धर्म एवं शिक्षा का प्रसार कार्य शुरू. किया। प्राप्य-पाश्चात्य विवाद का मुख्य कारण सन् 1813 के 'आज्ञा पत्र' की 43वीं धारा में प्रयोग किये गये दो शब्द थे "साहित्य" और "भारतीय विज्ञान"।
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- अध्याय - 1 वैदिक काल में शिक्षा
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- अध्याय - 2 बौद्ध काल में शिक्षा
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- उत्तरमाला
- अध्याय - 3 प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली पर यात्रियों का दृष्टिकोण
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- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 4 मध्यकालीन शिक्षा
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- उत्तरमाला
- अध्याय - 5 उपनिवेश काल में शिक्षा
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- उत्तरमाल
- अध्याय - 6 मैकाले का विवरण पत्र - 1813-33 एवं प्राच्य-पाश्चात्य विवाद
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- अध्याय - 7 वुड का घोषणा पत्र - 1854
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- अध्याय - 8 हण्टर आयोग
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- अध्याय - 9 सैडलर आयोग
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- अध्याय - 10 वर्धा आयोग
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- अध्याय - 11 राधाकृष्णन आयोग
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- अध्याय - 12 मुदालियर आयोग
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- अध्याय - 13 कोठारी आयोग
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- अध्याय - 14 राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 1986 एवं 1992
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- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 15 राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 2020
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- उत्तरमाला
- अध्याय - 16 पूर्व प्राथमिक शिक्षा की समस्यायें
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- उत्तरमाला
- अध्याय - 17 प्रारम्भिक एवं माध्यमिक शिक्षा की समस्यायें
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- अध्याय - 18 उच्च शिक्षा की समस्यायें
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- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
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- अध्याय - 19 भारतीय शिक्षा को प्रभावित करने वाले कारक
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- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला